शोले : इतिहास बनी

1975 का वर्ष ऎसा वर्ष था जो जितना अमिताभ बच्चन के लिए महत्वपूर्ण रहा, उतना ही हिन्दी फिल्म उद्योग के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अमिताभ बच्चन की दो और फिल्में आई एक यश चोपडा के निर्देशन में बनी निर्माता गुलशन राय की दीवार और दूसरी निर्माता जी.पी. सिप्पी की शोले। यश चोपडा द्वारा निर्देशित फिल्म दीवार में अमिताभ बच्चन एंगी यंगमैन का जो चेहरा पेश किया, जो उनके बाद आने वाला हर युवा अदाकार आज तक परदे पर उतारता आ रहा है। इस फिल्म में उनके साथ थे शशि कपूर, निरूपा राय, नीतू सिंह और परवीन बॉबी।Legendary hero amitabh Bachchanदीवार ने अमिताभ बच्चन को एक बार फिर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार दिलवाया। 1975 में यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रहकर चौथे स्थान पर रही और इंडिया टाइम्स की मूवियों में बॉलीवुड की हर हाल में देखने योग्य शीर्ष 25 फिल्मों में भी दीवार की गिनती होती है। 15 अगस्त, 1975 को रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी फिल्म शोले प्रदर्शित हुई। प्रदर्शन के पूर्व इस फिल्म के बारे में मीडिया ने विरोधाभासी प्रचार किया था। मीडिया का कहना था कि डकैतों पर आधारित इस फिल्म को कौन देखना पसन्द करेगा। इससे ज्यादा अच्छी फिल्मों (मुझे जीने दो) को जब दर्शकों ने नकार दिया तो शोले को देखने कौन आएगा। शोले प्रदर्शित हुई। शुरूआत में इसे वाकई में दर्शकों ने कम स्वीकारा, लेकिन जिन दर्शकों ने इसको देखा वे इसकी तारीफ करते नहीं थके। वही दर्शक अपने साथ अन्य दर्शकों को सिनेमा हॉलों में लेकर आए। और देखते ही देखते शोले सिनेमा इतिहास की सबसे बडी फिल्म और सबसे ज्यादा कमाई करने वाली साबित हुई।शोले ने अपने समय में 2,36,45,000,00 रूपये कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद 60 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर हैं। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, जया बच्चन और अमजद खान के साथ सत्येन कप्पू और जगदीप ने मुख्य भूमिका निभाई थी। 1999 में बीबीसी इंडिया ने इस फिल्म को शताब्दी की फिल्म का नाम दिया और दीवार की तरह इसे इंडियाटाइम्ज मूवियों में बॉलीवुड की शीर्ष 25 फिल्मों में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म फिल्मफेयर पुरस्कार था।रमेश सिप्पी की यह फिल्म जापानी निर्देशक अकीरा कुरोसावा के निर्देशन में बनी क्लासिक फिल्म सवन समुराई से प्रेरित थी। Legendary hero amitabh Bachchanइस फिल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फिल्म इतिहास की पहली ऎसी फिल्म थी, जिसके संवादों को कैसेट के जरिए रिलीज करके म्यूजिक कम्पनी एचएमवी ने लाखों रूपये की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फिल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन ने अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था। इसके बाद उन्होंने 1976 से 1984 तक अनेक सर्वश्रेष्ठ कलाकार वाले फिल्मफेयर पुरस्कार और अन्य पुरस्कार प्राप्त किए। शोले ने बॉलीवुड में अमिताभ को महान एक्शन नायक के रूप में स्थापित किया था, इसके बावजूद अमिताभ ने एक्शन के इतर भी स्वयं को अन्य भूमिकाओं में ढाला।Legendary hero amitabh Bachchan नतीजा दर्शकों के सामने अमिताभ का दूसरा रूप कभी-कभी (1976) और मनमोहन देसाई की एक्शन कॉमेडी अमर अकबर एंथनी (1977) आई।1976 में इन्हें यश चोपडा ने अपनी दूसरी फिल्म कभी कभी में साइन कर लिया यह और एक रोमांटिक फिल्म थी, जिसमें बच्चन ने अमित मल्होत्रा नाम वाले युवा कवि की भूमिका निभाई थी जिसे राखी गुलजार द्वारा निभाई गई पूजा नामक एक युवा लडकी से प्रेम हो जाता है। भावनात्मक जोश और कोमलता के विषय पर बनी कभी-कभी अमिताभ की इससे पहले की गई फिल्मों और बाद में की गई एक्शन फिल्मों की तुलना में प्रत्यक्ष कटाक्ष था। कभी-कभी ने एक बार फिर से अमिताभ बच्चन को फिल्म फेयर पुरस्कार दिलवाया। बॉक्स ऑफिस पर कभी-कभी अपने समय की सर्वाधिक सफल फिल्मों में शामिल थी। दर्शकों के सिर से अभी कभी-कभी का खुमार उतरा भी नहीं था कि वर्ष1977 में अमिताभ बच्चन की मनमोहन देसाई के निर्देशन में लास्ट एण्ड फाउण्ड फार्मूले पर आधारित संगीतमय रोमांटिक कॉमेडी “अमर अकबर एंथनी” प्रदर्शित हुई। फिर से अमिताभ ने अपने सुपर एक्टिंग के दम पर 1977 का फिल्म फेयर पुरस्कार अपनी झोली में डाला। इस फिल्म में इन्होंने विनोद खन्ना और ऋषि कपूर के साथ एनथॉनी गॉन्सॉलवेज के नाम से तीसरी अग्रणी भूमिका की थी। 1978 संभवत: इनके जीवन का सर्वाधिक प्रशंसनीय वर्ष रहा। इस वर्ष अमिताभ बच्चन की पांच फिल्में प्रदर्शित हुई जिनमें से भारत में उस समय की सबसे अधिक आय अर्जित करने वाली चार फिल्मों में अमिताभ नजर आए। इन पांच फिल्मों में से दो फिल्मों Legendary hero amitabh Bachchanकसमे वादे और डॉन में अमिताभ ने दोहरी भूमिका निभाई। त्रिशूल और मुकद्दर का सिकंदर ऎसी फिल्में रहीं जिनके लिए अमिताभ के आलोचकों ने भी भरपूर तारीफ की। इन दोनों फिल्मों के लिए इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। लेकिन पांचवीं फिल्म ऎसी थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर अमिताभ बच्चन के होते हुए दम तोड दिया था। यह फिल्म थी बेशर्म, जिसे हास्य अभिनेता देवेन वर्मा ने निर्देशित किया था। हालांकि इस फिल्म में उस समय की जानी मानी स्टार कास्ट ने काम किया था।अमिताभ के अतिरिक्त इस फिल्म में शर्मिला टैगोर और अमजद खान ने काम किया था। डॉन जिन दिनों प्रदर्शित हुई थी, वह अपने प्रथम सप्ताह में मीडिया और बॉलीवुड के बॉक्स ऑफिस सरताजों द्वारा असफल करार दे दी गई थी, लेकिन तकदीर ने यहां फिर से अमिताभ का साथ दिया और माउथ पब्लिसिटी के जरिए इस फिल्म ने दूसरे सप्ताह से अपनी सफलता का जो इतिहास रचा वह अपने आप में फिल्म उद्योग का इतिहास बन गया। जिक्र करना चाहेंगे उत्तरप्रदेश के बडे शहर कानपुर का जहां डॉन एक नामी सिनेमा हॉल में सिर्फ चार सप्ताह ही चल पाई थी। असफलता की निराशा में वितरक ने डॉन को कानपुर रेलवे स्टेशन के पास स्थित मंजूश्री सिनेमा हॉल में शिफ्ट किया। तकदीर ने ऎसा पलटा खाया कि डॉन ने कानपुर में मंजूश्री सिनेमा हॉल में 50 सप्ताह का रिकॉर्ड कायम किया। इस पडाव पर अप्रत्याशित दौड और सफलता के नाते बॉलीवुड ने अमिताभ बच्चन को वन मैन इण्डस्ट्री के नाम से ऎसी उपाधि दी जिसे आज तक कोई भी अभिनेता उनसे नहीं छीन पाया है।Legendary hero amitabh Bachchan1979 में पहली बार अमिताभ को मि0 नटवरलाल नामक फिल्म के लिए अपनी सहयोगी कलाकार रेखा के साथ काम करते हुए गीत गाने के लिए अपनी आवाज का उपयोग करना पडा। फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार, पुरूष पाश्र्व गायक का सर्वश्रेष्ठ फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। 1979 में इन्हें निर्देशक यश चोपडा की काला पत्थर के लिए एक बार फिर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया और इसके बाद 1980 में राजखोसला द्वारा निर्देशित फिल्म दोस्ताना में दोबारा नामित किया गया जिसमें इनके सह कलाकार शत्रुघन सिन्हा और जीनत अमान थे। दोस्ताना वर्ष 1980 की शीर्ष फिल्म साबित हुई।1981 में इन्होंने यश चोपडा की नाटकीयता फिल्म सिलसिला में काम किया, जिसमें इनकी सह कलाकार के रूप में इनकी पत्नी जया और अफवाहों में इनकी प्रेमिका रेखा थीं। इस युग की दूसरी फिल्मों में राम बलराम (1980), शान (1980), लावारिस (1981) और शक्ति (1982) जैसी फिल्में शामिल थीं। अमिताभ बच्चन के करियर में शक्ति का अपना अगल स्थान है। इस फिल्म में उन्होंने पहली बार अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ काम किया था।Legendary hero amitabh Bachchanनिर्देशक रमेश सिप्पी ने दो अभिनय सम्राटों को एक साथ लाकर फिल्म उद्योग में एक नया इतिहास बनाया। दिलीप कुमार के सामने अमिताभ ने कहीं भी अपने अभिनय को उन्नीस नहीं होने दिया। 1982 में कुली फिल्म में बच्चन ने अपने सह कलाकार पुनीत इस्सर के साथ एक फाइट की शूटिंग के दौरान अपनी आंतों को लगभग घायल कर लिया था। बच्चन ने इस फिल्म में स्टंट अपनी मर्जी से करने की छूट ले ली थी जिसके एक सीन में इन्हें मेज पर गिरना था और उसके बाद जमीन पर गिरना था। हालांकि जैसे ही ये मेज की ओर कूदे तब मेज का कोना इनके पेट से टकराया जिससे इनके आंतों को चोट पहुंची और इनके शरीर से काफी खून बह निकला था। अमिताभ को फौरन जहाज से उपचार हेतु अस्पताल ले जाया गया जहां लम्बे समय तक ये भर्ती रहे और कई बार मौत के मुंह में जाते-जाते बचे। यह अफवाह भी फैल भी गई थी कि वे एक दुर्घटना में मर गए हैं और संपूर्ण देश में इनके चाहने वालों की भारी भीड इनकी रक्षा के लिए दुआएं करने में जुट गयी थी। इस दुर्घटना की खबर दूर-दूर तक फैल गई और यूके के अखबारों की सुर्खियों में छपने लगी जिसके बारे में कभी किसी ने सुना भी नहीं होगा। बहुत से भारतीयों ने मंदिरों में पूजा अर्चनाएं की और इन्हें बचाने के लिए अपने अंग अर्पण किए और बाद में जहां इनका उपचार किया जा रहा था, उस अस्पताल (लीलावती) के बाहर इनके चाहने वालों की मीलों लंबी कतारें दिखाई देती थी। अमिताभ को ठीक होने में लम्बा वक्त लगा और वर्ष के अन्त में जाकर पुन: काम पर आ पाए। कुली 1983 में रिलीज हुई और आंशिक तौर पर बच्चन की दुर्घटना के असीम प्रचार के कारण बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।Legendary hero amitabh Bachchanकुली भारतीय फिल्म इतिहास की शायद पहली ऎसी फिल्म थी, जिसकी कहानी में इस दुर्घटना के बाद परिवर्तन करते हुए इसके अन्त में नायक को मौत पर विजय पाते हुए दिखाया गया था। निर्देशक मनमोहन देसाई ने दुर्घटना के बाद फिल्म की कहानी का अन्त बदल दिया था। पहले फिल्म के अन्त में अमिताभ को मरना था लेकिन बाद में पटकथा में परिवर्तन करने के बाद उसे अंत में जीवित दिखाया गया। देसाई ने इस बारे में कहा था जो वास्तविक जीवन में मौत से लडकर जीता हो, उसे परदे पर मौत अपना ग्रास बना ले। कुली में पहले सीन के अंत को जटिल मोड पर रोक दिया गया था और उसके नीचे एक कैप्शन प्रकट होता है जिसमें अभिनेता के घायल होने की बात लिखी गई थी और इसमें दुर्घटना के प्रचार को सुनिश्चित किया गया था। बाद में अमिताभ मियासथीनिया ग्रेविस में उलझ गए जो या तो कुली में दुर्घटना के चलते या फिर भारी मात्रा में दवाई लेने से हुआ या जो अतिरिक्त रक्त दिया गया था इसके कारण हुआ। उनकी बीमारी ने उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर महसूस करने पर मजबूर कर दिया और फिल्मों में काम करने से सदा के लिए छुट्टी लेने और राजनीति में शामिल होने का निर्णय किया। यही वह समय था जब उनके मन में फिल्म करियर के संबंध में निराशावादी विचारधारा का जन्म हुआ और प्रत्येक शुक्रवार को प्रदर्शित होने वाली नई फिल्म के प्रत्युत्तर के बारे में चिंतित रहते थे। प्रत्येक प्रदर्शित फिल्म से पहले वह नकारात्मक रवैये में जवाब देते थे कि यह फिल्म तो फ्लाप होगी। 1984 में अमिताभ ने अभिनय से कुछ समय के लिए विश्राम ले लिया और अपने पुराने मित्र राजीव गांधी को सहयोग करने की दृष्टि से राजनीति में कूद पडे। उन्होंने इलाहाबाद लोकसभा सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एच.एन. बहुगुणा को आम चुनाव के इतिहास में (68.2 प्रतिशत) के मार्जिन से विजय दर्ज करते हुए चुनाव में हराया था। हालांकि इनका राजनीतिक करियर कुछ अवधि के लिए ही था, जिसके तीन साल बाद इन्होंने अपनी राजनीतिक अवधि को पूरा किए बिना त्याग दिया। इस त्यागपत्र के पीछे इनके भाई का बोफोर्स विवाद में अखबार में नाम आना था, जिसके लिए इन्हें अदालत में जाना पडा।Legendary hero amitabh Bachchanहालांकि बाद में न्यायालय ने इन्हे इस मामले में दोष मुक्त सिद्ध कर दिया था। बहुत कम लोग ऎसे हैं जो ये जानते हैं कि स्वयंभू प्रेस ने अमिताभ बच्चन पर प्रतिबंध लगा दिया था। स्टारडस्ट और कुछ अन्य पत्रिकाओं ने मिलकर एक संघ बनाया, जिसमें अमिताभ के शीर्ष पर रहते समय 15 वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। इन्होंने अपने प्रकाशनों में अमिताभ के बारे में कुछ भी न छापने का निर्णय लिया। 1989 के अंत तक बच्चन ने उनके सैटों पर प्रेस के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन, वे किसी विशेष पत्रिका के खिलाफ नहीं थे। ऎसा कहा गया है कि बच्चन ने कुछ पत्रिकाओं को प्रतिबंधित कर रखा था, क्योंकि उनके बारे में इनमें जो कुछ प्रकाशित होता रहता था, उसे वे पसंद नहीं करते थे और इसी के चलते एक बार उन्हें इसका अनुपालन करने के लिए अपने विशेषाधिकार का भी प्रयोग करना पडा।
बच्चन : मैं और मेरी तन्हाई . . . .

टिप्पणी करे