विश्वजीत : “किंग ऑफ रोमांस”

एक अरसे बाद रविवार की सुबह गहरी नींद में सोते हुए कानों में लता मंगेशकर की मधुर आवाज सुनाई दी। गीत के बोल थे, “बच्चे मन के सच्चे सारे जग की आंख के तारे ये वो नन्हे फूल है जो भगवान को लगते प्यारे, बच्चे मन के सच्चे।”
इस गीत को लिखा था साहिर ने और संगीत से सजाया था रवि। वर्ष 1968 में प्रदर्शित हुई “दो कलियां” के इस गीत को सुनते ही ध्यान में आया एक ऎसे नायक का चेहरा जिसने बंगाली फिल्मों के जरिए हिन्दी फिल्म उद्योग में प्रवेश किया था और अपनी पहली हिन्दी फिल्म “बीस साल बाद” के प्रदर्शन के साथ ही सफलता का पर्याय बना। यह अदाकार था विश्वजीत, जिसे गायक संगीतकार हेमन्त कुमार ने हिन्दी फिल्मों से परिचित कराया था।
स्वाभाविक अभिनय और आकर्षक व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध विश्वजीत देब चटर्जी ने बंगाली फिल्मों और हिंदी फिल्मों के दर्शकों के दिलों में वर्षो तक राज किया। कोलकाता में पले-बढे विश्वजीत के अभिनय के सफर की शुरूआत बंगाली फिल्मों से हुई। “माया मृग” और “दुई भाई” जैसी सफल बंगाली फिल्मों में अभिनय के बाद विश्वजीत ने हिंदी फिल्मों का रूख किया। वे कोलकाता से मुंबई आए। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने बंगाली फिल्मों के इस सफल अभिनेता को सिर-आंखों पर बिठाया। परिणामस्वरूप बेहद कम वक्त में विश्वजीत की झोली हिंदी फिल्मों से भर गयी। 1962 में विश्वजीत की पहली हिंदी फिल्म “बीस साल बाद” प्रदर्शित हुई जिसने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए सोपान बनाए। देखते-ही-देखते विश्वजीत हिंदी फिल्मों के तेजी से उभरते हुए अभिनेता बन गए। विश्वजीत के चाहने वालों ने उन्हें “किंग ऑफ रोमांस” की उपाधि दी।

विश्वजीत की सफलता में सबसे बडा योगदान उन पर फिल्माए गए गीतों का रहा है। गीतों की लोकप्रियता ने उनके फिल्मी कòरिअर में चार-चांद लगाए। विश्वजीत जिन फिल्मों में आए उनके गीत संगीत ने लोकप्रियता की नई ऊंचाईयों को छुआ। फिर चाहे वह उनकी पहली फिल्म “बीस साल बाद” का “कहीं दीप जले कहीं दिल” हो, “वासना” का “इतनी नाजुक न बनो”, “मेरे सनम” का “पुकारता चला हूँ मैं गली गली बहार की बस एक शाम” या फिर मनमोहन देसाई के निर्देशन में बनी “किस्मत” का “कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऎसा डाला कजरे ने ले ली मेरी जान हाय मैं तेरे कुर्बान”।

मनमोहन देसाई पहले ऎसे निर्देशक थे जिन्होंने विश्वजीत की सुन्दरता से प्रभावित होकर उन्हें अपनी फिल्म के इस गीत में एक महिला किरदार के रूप में पेश किया था और गीत के बोलो को आवाज दिलवाई शमशाद बेगम की। इस गीत को विश्वजीत के साथ नायिका बबीता के ऊपर फिल्माया गया था। बबीता के बोलों को स्वर दिया था आशा भोंसले ने। “किस्मत” एक सस्पेंस फिल्म थी जिसकी सफलता में ओ.पी. नैयर के संगीत ने अहम् भूमिका निभाई थी। “बीस साल बाद” के बाद विश्वजीत ने कई यादगार फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभायी जिनमें “मेरे सनम”, “शहनाई”, “अप्रैल फूल”, “दो कलियां” “वासना”, “दो दिल”, “कोहरा”, “मैं सुन्दर हूं” और “शरारत” उल्लेखनीय है।

विश्वजीत ने अपने समय की सभी सुपर सितारा नायिकाओं के साथ परदे पर रोमांस किया। इनमें विशेष रूप से आशा पारेख, मुमताज, माला सिन्हा और राजश्री के साथ उनकी रोमांटिक जोडी बेहद पसंद की गई। जी.पी. सिप्पी की फिल्म “मेरे सनम” में दर्शकों ने आशा पारेख के साथ उनकी जोडी को बेहद पसन्द किया था। इस फिल्म ने अपने समय में सिल्वर जुबली की सफलता प्राप्त की थी।
1962 में हेमन्त कुमार की “बीस साल बाद” में विश्वजीत वहीदा रहमान के साथ नजर आए थे। इस फिल्म की सफलता के बाद हेमन्त कुमार ने एक और फिल्म का निर्माण किया। “कोहरा” के नाम से बनी इस फिल्म का प्लाट भी रहस्यमय था लेकिन “कोहरा” बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों द्वारा पूरी तरह से नकार दी गई थी। इस फिल्म की असफलता में इसके संगीत का भी हाथ रहा।

जहां “बीस साल बाद” के गीत संगीत ने दर्शकों को प्रभावित किया था, वहीं “कोहरा” से वे निराश हुए। इसके बाद हेमन्त कुमार ने कई सालों तक फिल्म निर्माण नहीं किया था। लम्बे अन्तराल के बाद वे फिर फिल्म निर्माण में उतरे और उन्होंने बेहद प्यारी और दिल को छूने वाली फिल्म “खामोशी” जिसमें राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र के साथ उनकी पसन्दीदा अभिनेत्री वहीदा रहमान ने सर्वश्रेष्ठ अभिनय पेश किया था। हिंदी फिल्मों में मिली स्वीकार्यता के बाद भी विश्वजीत ने बंगाली फिल्मों में अभिनय करना नहीं छोडा। वे कोलकाता जाते रहे और चुनींदा बंगाली फिल्मों में अभिनय करते रहे जिनमें सुपरहिट फिल्म “चौरंगी” उल्लेखनीय है। लगातार तेरह वर्ष तक हिन्दी फिल्मों में सफलता प्राप्त करने के बाद विश्वजीत फिल्म निर्माण की ओर मुडे और उन्होंने निर्माता के साथ निर्देशन की कुर्सी पर बैठने का भी अहम् फैसला किया। अब यही कद उनके सफलतापूर्वक चल रहे करियर में बाधक बना।
उन्होंने वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म “कहते हैं मुझको राजा” के निर्माण और निर्देशन दोनों की जिम्मेदारी संभाली।
विश्वजीत को पूरा विश्वास था कि दर्शक निर्देशक के तौर पर उनका नाम देखने के बाद सिनेमा हालों पर दर्शकों का सैलाब आएगा लेकिन धर्मेद्र, हेमा मालिनी, शत्रुƒन सिन्हा और रेखा जैसे सितारे होने के बावजूद उनकी इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर असफलता हाथ लगी। निर्देशन में असफलता हाथ लगने के बाद उन्होंने एक बार फिर अभिनय की ओर अपना रूख कर लिया। “कहते हैं मुझको राजा” के दौरान उन्होंने स्वयं को अभिनेता के तौर पर मिलने वाली फिल्मों को ठुकराना शुरू कर दिया था जिसकी वजह से बाद में उन्हें हिन्दी फिल्मों में नायक के तौर पर काम मिलना बन्द हो गया। हाँ बंगाली फिल्मों में जरूर वे नायक बनकर आते रहे लेकिन हिंदी फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं करके ही सन्तुष्ट रहना पडा। अपनी आकर्षक छवि से दर्शकों को दीवाना बनाने वाले विश्वजीत का दामन विवादों से अछूता नहीं रहा। बॉलीवुड की सुप्रसिद्ध तारिका रेखा की पर्दापण फिल्म “दो शिकारी” के नायक विश्वजीत ही थे। मगर अफसोस यह फिल्म 10 साल के अन्तराल के बाद परदे पर प्रदर्शित हो पायी थी।

इस फिल्म के जरिए वे तब अचानक सुर्खियों में छा गए थे जब रेखा के साथ उनके चुंबन दृश्य की तस्वीरें एक पत्रिका में प्रकाशित हुई। दरअसल, “दो शिकारी” में विश्वजीत और रेखा के बीच चुंबन दृश्य फिल्माया जाना था। निर्देशक इस दृश्य की शूटिंग के दौरान “कट” कहना भूल गए। रेखा और विश्वजीत चुंबन के दृश्य में इतने मशगूल हो गए कि उन्हें यह भी अहसास नहीं हुआ कि पूरी यूनिट उन्हें देख रही है। यूनिट के सभी सदस्य जब तालियां बजाने लगे तब जाकर रेखा और विश्वजीत सावधान हुए। इसी चुंबन दृश्य की तस्वीर एक पत्रिका ने प्रकाशित कर दी जिसके कारण फिल्मी गलियारे में रेखा और विश्वजीत के बीच कथित रोमांस की चर्चा होने लगी।

हालांकि, यह विवाद ज्यादा दिनों तक नहीं चला। सिल्वर स्क्रीन के “किंग ऑफ रोमांस” कहे जाने वाले विश्वजीत का निजी जीवन भी कई उतार-चढाव से गुजरा है। उन्होंने दो शादियां की। पहली पत्नी रत्ना चटर्जी से अलग होकर उन्होंने दूसरी शादी रचायी। जब विश्वजीत ने दूसरी शादी रचायी थी तब उनके पुत्र प्रसन्नजीत और पुत्री पल्लवी चटर्जी की उम्र बेहद कम थी। उल्लेखनीय है कि पिता से मिली अभिनय की विरासत को प्रसन्नजीत ने आगे बढाया है।
प्रसन्नजीत आज बंगला फिल्मों का सुपर सितारा हैं। उन्होंने सुप्रसिद्ध निर्देशकों के साथ सुपर हिट फिल्मों में अपने अभिनय के जौहर दिखलाए हैं। प्रसन्नजीत ने जिस तरह से अपने पिता की अभिनय विरासत को आगे बढाया है, उसी तरह से उन्होंने शादी के मामले में भी अपने पिता को पीछे छोडा है। विश्वजीत ने जहां दो विवाह किए, वहीं प्रसन्नजीत ने तीन विवाह किए हैं। उनका पहला विवाह सुप्रसिद्ध अभिनेत्री देबाश्री रॉय के साथ हुआ था। इनके साथ प्रसन्नजीत ने 50 फिल्मों में बतौर नायक काम किया है। इसके बाद उन्होंने अर्पणा गुहा के साथ विवाह किया। यह दोनों विवाह उन्हें रास नहीं आए, जिसके बाद उन्होंने तीसरा विवाह अभिनेत्री अर्पिता पाल के साथ किया। इनके साथ प्रसन्नजीत ने चार फिल्मों में बतौर नायक परदे पर भूमिका निभाई है। अपने पिता की तरह प्रसन्नजीत ने हिन्दी फिल्म उद्योग में अपना भाग्य आजमाना चाहा लेकिन उन्हें इस मामले में सफलता नहीं मिली और केवल दो हिन्दी फिल्मों में काम करने के बाद उन्होंने यहां से संन्यास ले लिया और वापसी अपनी जडों की तरफ लौटते हुए बंगाली फिल्मों में अपने कदमों को मजबूती प्रदान की। प्रसन्नजीत हिन्दी में फिल्म “आंधियाँ” के जरिए आए। “आंधियां” अपने समय की सुपर सितारा रही मुमताज की वापसी की पहली फिल्म थी। इस फिल्म का निर्माण पहलाज निहलानी ने किया था और निर्देशन की बागडोर डेविड धवन ने सम्भाली थी। मुमताज की वापसी की फिल्म होने के बावजूद दर्शकों ने इस फिल्म को पूरी तरह से नकार दिया था। इसके बाद प्रसन्नजीत को निर्माता निर्देशक मेहुल कुमार ने अपनी फिल्म “मीत मेरे मन के” में पेश किया था। यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। इसके बाद प्रसन्नजीत पुन: बंगाली फिल्मों में लौट गए। जहां वे पिछले दो दशक से बंगाली फिल्मों के सुपरस्टार की कुर्सी पर विराजमान हैं। हालांकि, पहली पत्नी रत्ना चटर्जी से अलगाव के बाद विश्वजीत के अपने पुत्र प्रसन्नजीत के साथ संबंध मधुर नहीं रहे हैं। यही कारण है कि बंगाली फिल्मों के प्रशंसक पिता-पुत्र की इस जोडी को साथ-साथ पर्दे पर देखने से वंचित रहे हैं। गौरतलब है कि इस समय विश्वजीत मुंबई में अपनी दूसरी पत्नी और बिटिया सांभवी के साथ रह रहे हैं।

हिंदी फिल्मों में विश्वजीत का सफर बेहद नपा-तुला रहा। सफलता का शिखर तो वे नहीं छू पाए, पर वे दर्शकों के दुलारे अभिनेता जरूर बने रहे। उनके व्यक्तित्व का आकर्षण और उनकी आंखों की गहराई ने कई वर्षो तक दर्शकों के दिल के तारों को झंकृत किया है। उन्होंने हिन्दी में जिन फिल्मों में काम किया उसकी बानगी इस प्रकार है- कòरिअर की मुख्य फिल्में 1962- बीस साल बाद-कुमार विजय सिंह 1962- सॉरी मैडम 1963- बिन बादल बरसात-प्रभात 1964- शहनाई 1964- कोहरा- राजा अमित कुमार सिंह 1964- कैसे कहूं 1964- अप्रैल फूल- अशोक 1965- मेरे सनम-कुमार 1965- दो दिल- मनु 1966- ये रात फिर ना आएगी- सूरज 1966- सगाई- राजेश 1966- बीवी और मकान- अरूण 1966- आसरा- अमर कुमार 1967- नाइट इन लंदन- जीवन 1967- नई रोशनी- प्रकाश 1967- जाल- इंस्पेक्टर शंकर 1967- हरे कांच की चूç़डयां 1967- घर का चिराग 1968- वासना 1968- किस्मत 1968- कहीं दिन कहीं रात 1968- दो कलियां 1969- तमन्ना 1969- राहगीर 1969- प्यार का सपना 1970- परदेसी 1970- इश्क पर जोर नहीं- अमर 1970- मैं सुंदर हूं- अमर 1972- शरारत- हैरी 1973- श्रीमान पृथ्वीराज 1973- मेहमान- राजेश 1974- दो आंखें 1974- फिर कब मिलोगी 1975- कहते हैं मुझको राजा (निर्देशक-निर्माता) 1976- बजरंगबली- भगवान श्रीराम 1977- नामी चोर 1977- बाबा तारकनाथ- साइंटिस्ट 1979- दो शिकारी- रंजीत 1980- हमकदम-मिस्टर दत्त 1984- आनंद और आनंद- ठाकुर 1985- साहेब 1986- कृष्णा कृष्णा- भगवान श्री कृष्ण 1986- अल्ला रक्खा- इंस्पेक्टर अनवर 1990- जिम्मेदार- चीफ इंस्पेक्टर 1991- जिगरवाला- रंजीत सिंह 1991- कौन करे कुर्बानी 1992- महबूब मेरे महबूब 2002- ईट का जवाब पत्थर- देवेन पिछले एक दशक से विश्वजीत हिन्दी सिनेमा से दूर हैं। आज की फिल्मों में उनके लिए कोई किरदार, कोई भूमिका लेखक निर्देशकों को नजर नहीं आती है। ऎसा सिर्फ विश्वजीत के साथ ही नहीं है बल्कि और भी कई ऎसे सितारे हैं जिन्होंने अपने समय में जहां दर्शकों के दिलों पर राज किया था, आज वे दो वक्त की रोटी का जुगाड कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। अफसोस।

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